पीत हुआ गात
पतझर के पात सा
पीत हुआ गात
प्रिय प्रतीक्षा में
पथ टोहते नेत्रों से
झरने लगे अश्रु।
पातों की शय्या निरख
विरह से /व्याकुलता से /वेदना से
विगलित हुए चक्षु।
बिन बोले ही उड़ गया
छत की मुंडेर पर
बैठा काग।
स्वस्तिक से पावन
प्रिय मन पर
प्रियतमा ने लगा
प्रीत की रोली
गाया भावनाओँ का फ़ाग
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